देवास की मां चामुंडा और तुलजा भवानी टेकरी के बारे में
देवास की हर समृद्धि पर माता टेकरी के हस्ताक्षर...

देवास की मां चामुंडा टेकरी की आराधना से इस शहर के भाग्य उदय होते रहे हैं। वैसे तो इस शहर का उदय ही चामुंडा टेकरी के सान्निध्य के कारण है। कोई स्थान जब अपनी ऊर्जा की तरंगें विकिरित करता है, तो आसपास का वातावरण उसके मोहपाश में बंधता चला जाता है। वैसा ही कुछ मां चामुंडा टेकरी के साथ भी हुआ है। क्या राजा, क्या रंक, सब इसके साथ बंधते चले गए। देवास का आगाज टेकरी के साथ होता है और इसका संपूर्ण विकास भी इसके साथ ही चलता है। माता टेकरी के साथ ही देवास भी निखरता चला जाता है। सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, भौतिक प्रगति का दामन भी टेकरी साथ बंधा रहा है। राजाओं के समय देवास की बुनावट से लेकर इसका संपूर्ण विकास का नक्शा टेकरी के साथ ही डिजाइन होता रहा है।

उद्योग, व्यापार-व्यवसाय, संस्कृति सबकुछ के साथ माता टेकरी का नाता है। देवास में हुए बड़े बदलावों और यहां व्यापार-उद्योग के उन्नयन तथा विशिष्ट लोगों के आगमन के पीछे कहीं न कहीं टेकरी के सान्निध्य की कहानी जुड़ी हुई है। ऐसा भी कह सकते हैं कि देवास का शैशवकाल मां चामुंडा व तुलजा देवी की गोद में बीता और उसी की देखरेख में वह बड़ा होता चला गया। हर दृष्टि से उसका पालन-पोषण हुआ है। मां की विशेष कृपा रही। एक विशेष आभामंडल इस शहर को मिला। कोई भी यदि देवास शहर के साथ जुड़ा, इसे अपनी कर्मभूमि बनाया, तो उसके केंद्र में माता टेकरी रही। यहां संत आए, गुणीजन आए, व्यापारी आए, उद्योगपति आए, लेकिन सबका नाता मां चामुंडा व तुलजा माता तथा पहाड़ी के सान्निध्य से विलग नहीं रहा।

मां चामुण्डा शासकीय देवस्थान प्रबंध समिति देवास द्वारा मंदिर के विकास एवं जीर्णोद्धार के लिए अथक प्रयास

देवास में स्थित मां चामुण्डा टेकरी का संचालन मां चामुण्डा शासकीय देवस्थान प्रबंध समिति द्वारा किया जा रहा है। यह समिति धर्मस्व विभाग, मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत गठित है जो कि शासन के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत कार्य करती है। समिति के अध्यक्ष पदेन कलेक्टर महोदय एवं सचिव पदेन अनुविभागीय अधिकारी देवास है। विगत वर्षों में समिति द्वारा मंदिर के विकास एवं जीर्णोद्धार हेतु अथक प्रयास किए गए हैं। कार्य की वृहदता में 200 किलोग्राम चांदी से मंदिर में रजतीकरण, नवीन प्रसादालय, प्रवचन हॉल, हनुमान मंदिर के सामने स्थित नवीन रिटेनिंग दीवार एवं जैन मंदिर प्लाजा शामिल है। मंदिर समिति द्वारा देवास माता टेकरी पर आने वाले समस्त श्रद्धालुओं की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए संपूर्ण कार्य निष्ठापूर्वक किया जा रहा है। मंदिर समिति के द्वारा किए गए अभूतपूर्व विकास कार्यों से विगत वर्षों में शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में श्रद्धालुओं की संख्या में सतत् रुप से वृद्धि हो रही है। मां चामुण्डा टेकरी देवास जिले की पहचान एवं गरिमा रही है, जिसे बनाए रखने हेतु मंदिर समिति द्वारा लगातार टेकरी की भव्यता एवं सुंदरता को नवीन पड़ाव की ओर अग्रसर करने हेतु निरंतर प्रयास किया जा रहा है। मंदिर समिति आश्वस्त है कि अपने प्रयासों से मां चामुण्डा टेकरी को नए आयाम की ओर अग्रसर करने में सफल रहेगी।

माता टेकरी : पौराणिक महत्व और इतिहास

मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में इंदौर से करीब 34 किमी की दूरी पर देवास टेकरी है। यह माता के 52 शक्तिपीठों में शामिल हैं। इस टेकरी की विशेषता यह है कि यहां पर दो बहनों का वास है, जिसे तुलना भवानी (बड़ी बहन) व चामुंडा माता (छोटी बहन) के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां देवी मां का रक्त गिरा था, इसलिए मां चामुंडा का प्राकट्य हुआ। इस मंदिर की प्रसिद्धि इतनी है कि दूर-दूर से लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। नवरात्रि के समय तो भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 410 सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। अब यहां रोप-वे की सुविधा भी हो गई है, जिससे भक्त कुछ ही समय में माता के दरबार में पहुंच सकते हैं। चामुंडा मंदिर के पास भैरव बाबा का मंदिर भी है। कहा जाता है कि माता के दर्शन का लाभ तभी मिलता है, जब आप भैरव बाबा के दर्शन करें। समय के साथ-साथ यहां पर प्रशासन ने विकास कार्य करवाए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को दर्शन में सुविधा हो।

देवास टेकरी की पौराणिक कथा

देवास की टेकरी पर दो माताएं थीं, जो रिश्ते में बहनें थीं। एक बार दोनों बहनों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया, जिसके चलते दोनों अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी मां पाताल में समाने लगी तो छोटी मां अपने स्थान से उठ खड़ी हुई। तब हनुमान जी व भैरव बाबा ने दोनों माताओं से क्रोध शांत करने और वहीं रुकने की विनती की। दोनों माताएं जैसी स्थिति में थी वैसी ही रुक गई। बड़ी माता का आधा शरीर पाताल में समा चुका था। छोटी माता टेकरी से उत्तर रही थी, उनका मार्ग अवरुद्ध होने के कारण वे और गुस्सा हो गई और जिस अवस्था में वे नीचे उतर रहीं थी, उसी में वे टेकरी पर विराजमान हो गई।

52 शक्तिपीठों में से एक

देवास माता मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। अन्य शक्तिपीठों में माता के शरीर के भाग गिरे थे, लेकिन टेकरी पर माता का रक्त गिरा था, जिससे मां चामुण्डा देवी प्रकट हुईं। चामुण्डा देवी को सात प्रमुख देवियों में से एक माना जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह अनादिकाल से है, लेकिन इसकी प्राचीनता का कोई प्रमाण नहीं है।

देवास यानी देवियों का वास

देवास के बारे में मान्यता है कि यहां पर कई देवी-देवताओं का साक्षात वास है। देवास का नाम दो शब्दों देव और वास से मिलकरबना है, जिसका मतलब होता है देवों का वास। यहां दोनों ही देवियां जागृत अवस्था में हैं। मां चामुण्डा की मूर्ति की विशेषता है कि ये दिन में तीन रूप बदलती है। तीन रूपों में सुबह पहला रूप बाल्यावस्था, दोपहर में दूसरा रूप युवावस्था और शाम को तीसरा रूप वृद्धावस्था का देखने को मिलता है।

देवास टेकरी का ऐतिहासिक महत्व

देवास टेकरी पर एक सुरंग भी है, जो करीब ढाई हजार साल पुरानी बताई जाती हैं। 45 किमी लंबी सुरंग का दूसरा हिस्सा उज्जैन के भर्तृहरि गुफा के पास में निकलता है। कहा जाता है कि यह सुरंग का इस्तेमाल उज्जैन और देवास के गुप्त रास्ते के लिए उपयोग होता था। ऐसी मान्यता है कि उज्जैन के राजा भर्तृहरि इसी सुरंग से मां चामुण्डा के दर्शन करने के लिए आते थे। यह टेकरी कई ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रही हैं। इसी गुफा में शंकर भगवान की पिंडी और पंचमुखी हनुमानजी का मंदिर भी है। देवी के नौ रूपों में मां चामुण्डा और मां तुलजा भवानी का नाम हिंदू ग्रंथों में आता है। देवास टेकरी पर स्थित देवियों की मूर्ति नौवीं शताब्दी की बताई जाती है। चंदरबरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो में देवास नगर का इतिहास एक हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर को लेकर अवधारणा है कि जब देवास शहर का अस्तित्व नहीं था तब टेकरी पर स्थित मां की मूर्तियों के दर्शन करने भक्त आया करते थे। देवास में रहे होल्कर वंश और पवार वंश के राजाओं की कुलदेवी के रूप में दोनों माताओं की पूजा की जाती थी। प्राचीन समय में मां चामुंडा शक्तिपीठ का यह मंदिर आकार में छोटा था, लेकिन अब इसे दर्शनार्थियों के लिए सुविधाजनक बनाया गया है। दोनों ही देवियों के वर्तमान मंदिरों की संरचना बताती है कि ये मंदिर मराठा शैली में बने हुए हैं और दोनों ही मंदिर समकालीन है।(इसमें कई बातें भान्यता के आधार पर है)

2000 वर्ष पहले जनविहीन थी माता टेकरी

पुस्तक 'साधन शिखर' की भूमिका स्वामी शिवोम तीर्थजी ने लिखा है कि 'आज से दो हजार वर्ष पूर्व माताजी की टेकरी पूर्णतया जनविहीन, वनाच्छादित एकान्त-शान्त थी। एक छोटी-सी गुफा में माताजी की एक शिला पर उभरी आकृति के दर्शन करने, टेकरी के आसपास की पहाड़ियों पर निवास करने वाले अदृश्य महापुरुष यदा-कदा आते रहते थे। उन दिनों यहां वर्षा काफी हुआ करती थी। इधर-उधर पानी के स्रोत फैले थे। जंगली फल तथा कंदमूल की कोई कमी नहीं थी। एकान्तप्रिय साधकों के लिए यह स्थान आदर्श रूप था। भर्तृहरि ने जब यह स्थान देखा तो उनका हृदय प्रसभता से नाच उठा। भोजन, जल, एकान्त, प्राकृतिक सौंदर्य, माताजी की उपस्थिति, सबकुछ तो साधन के अनुकूल था। टेकरी पर खड़े होकर देखने से जहां तक नजर जा सकती थी कोई बस्ती नहीं थी। उन्होंने कुछ समय यहीं बिताने का मन बना लिया। भर्तृहरि के रूप में जैसे वैराग्य, त्याग तथा तपस्या ने मूर्तिमान स्वरूप धारण कर लिया था। उनका ध्यान आते ही मन में उपरति का भाव तरंगित हो उठता है। उन्होंने राज-वैभव, विलासिता की सभी सुविधाएं तथा मान-सम्मान सभी कुछ त्याग कर अपने-आपको अध्यात्म उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। वैराग्य ही योग-भक्ति का आधार है। वैराग्यहीन-व्यक्ति अध्यात्म के क्षेत्र में एक पग भी आगे नहीं बढ़ा सकता। भर्तृहरि जन्म-जन्मान्तर के योगी थे। किसी प्रबल प्रारब्ध के कारण कुछ समय के लिए सांसारिकता में उलझ गए थे। जब उन्हें अपनी पटरानी पिंगला की ओर से झटका लगा, तो उनके हृदय का प्रसुप्त वैराग्य जाग्रत हो गया। कोई अन्य राजा होता तो पिंगला को सूली पर टंगवा देता, किन्तु भर्तृहरि वैराग्याभिभूत होकर गृहत्याग कर गए एवं नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित होकर विरक्त हो गए। इनका वैराग्य इतना परिपक्व था कि सम्प्रदाय में इनके नाम पर वैराग्य सम्प्रदाय ही चल निकला। वह वैराग्य, त्याग, तपस्या के महानायक थे

श्रमदान से बनाई थीं सीढ़ियां

1876 का वर्णन आमचे देवास में लिखा है कि '75 से 80 वर्ष पूर्व गोविंद बुवा नामक एक साधुपुरुष होते थे, जो टेकरी पर ही रहते थे, वहां उनके ही नाम का एक बंगला भी है। थोड़े वर्ष पूर्व श्री चामुंडा देवी पर जाने के मार्ग पर सीढ़ियां बनाई गई और यहां की स्थानीय भक्त मंडली ने धन व श्रमदान करके ऊपर तक जाने का रास्ता तैयार किया। टेकरी के बीच से देवास शहर के देखने पर आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। टेकरी पर जो झाड़झंकूर लगे हुए थे, उनका आकार दोनों तरफ से हाथी की सुंड जैसा दिखाई देता था। यह वर्णन 80 वर्ष पूर्व देवास में वृत्तलहरी नाम का साप्ताहिक पत्र निकलता था, उसमें 3 जनवरी 1876 के अंक में स्थानीय समाचार पत्र में छापा गया था।

दरवाजा, दीपमाला और ओटला बना सन् 1876 में

नूतन मंदिर चामुंडा देवी का पूरा नाम रक्त चामुंडा देवी है। रक्त चामुंडा देवी के ऊपर एक गृहस्थ ने एक नया मंदिर बनवाया था। उसे बनाने में 2000 रुपए खर्च हुए थे। मंदिर का बाद का दरवाजा, दीपमाला, ओटला वगैरह आदि का कार्य 1876 में हुआ। इसका पुण्य ग्वालियर के श्रीमंत भक्त सज्जन को जाता है। चामुंडा देवी बड़ी पाती की हद में था। उस समय दूसरे कृष्णाजीराव बाबा सा. का शासनकाल था।'

मूर्तियों के 10वीं-11वीं शताब्दी के होने का उल्लेख

आमचे देवास के एक वर्णन में लिखा है 'देवास की टेकरी जिन पत्थरों से बनी है वह पत्थर किसी काम के नहीं हैं, लेकिन टेकरी के अंग पर यानी ऊपर जो कलाकृतियां शोभायमान हैं, वैसी किसी अन्य जगह पर देखने को नहीं मिलती। यहां मां चामुंडा देवी व मारुति की भव्य मूर्ति निकलकर आई है। अर्थात यह सारी कलाकृतियां यहां अपने आप उकेरकर आई हुई है। ऐसा वातावरण कहीं नहीं है। टेकरी और उसमें बसी चामुंडा व मारुति की मूर्ति दसवीं तथा 11वीं शताब्दी की है। इससे यह सत्य जान पड़ता है कि देवास का इतिहास हजार वर्ष पुराना है।' एक अन्य उल्लेख भी टेकरी के संदर्भ में मिलता है जिसमें लिखा है कि 'देवी की छवि गुफा में पत्थर की दीवार को काटकर बनाई गई है। यह प्रतिमा खंड़ी अवस्था में है। यहां पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। एक बस स्टैंड के समीप शंख द्वार से होते हुए रपट वाले मार्ग से पहुंचा जा सकता है, दूसरा भोपाल चौराहा भगवती सराय के सामने सोढ़ी मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहां चौड़ी पत्थर की सीढ़ियां हैं। समय-समय पर हुए विकास कार्यों के कारण टेकरी की सुंदरता बढ़ी है तथा हरियाली भी लौट आई है।'

टेकरी की सुविधाओं को बढ़ाने में राजा, प्रजा और प्रशासन की भूमिका

एक समय यह टेकरी जंगल के बीच में थी। जो वृत्तांत मिलते हैं, उससे लगता है कि यहां साधनारत लोगों के साथ कुछ ही लोगों का आना-जाना रहा होगा। कालांतर में 1876 के बाद से यहां विकास कार्य प्रारंभ हुए। श्रीमंत कृष्णाजीराव द्वितीय के ससुराल पक्ष के किसी गुप्त व्यक्ति द्वारा यहां दीपदान, ओटला व दरवाजे का कार्य कराए जाने का वर्णन मिलता है। इसके साथ ही जनता द्वारा सीढ़यों के निर्माण में श्रमदान और धनदान करने का उल्लेख भी मिलता है। करीब 150 साल से टेकरी पर आमजन के पहुंचने तथा श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं। यहीं से विकास के सिलसिले की शुरुआत होती है। आजादी के पहले और फिर आजादी के बाद इक्का-दुक्का कार्य निरंतर कराए जाने का उल्लेख यदा-कदा मिलता है। यहां आसपास के पुराने स्थानों में शीलनाथ धूनी, गुफा, एरीना, नारायण कुटी, रजबअली खां सा. की मजार, मीठा तालाब, भगवती सराय, तोपखाना आदि होने का उल्लेख है। देवास टेकरी का समय-समय पर प्रशासन द्वारा जीणोध्दार कराया जाता रहा है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर द्वार का निर्माण कराया गया है, जहां से भक्त सीढ़ियों के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा जबरेश्वर महादेव मंदिर की ओर से एक रपट मार्ग भी जाता है। टेकरी पर जाने के लिए रोव-वे का निर्माण भी किया गया है, इसके जरिए श्रध्दालु कुछ ही समय में टेकरी तक पहुंच सकते हैं। टेकरी पर स्थित मंदिरों का जीर्णोध्दार प्रशासन द्वारा कराया गया है, साथ ही यहां लोगों के बैठने और पानी की व्यवस्था भी रहती है। रात के समय मंदिर के आकर्षण के लिए रंगबिरंगी लाइट लगाई गई हैं। मां चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर की पहाड़ी से देवास शहर का भव्य नजारा देखने को मिलता है। ऐतिहासिक घटनाओं, विभिन्न राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक स्थान निर्बाध रूप से आम और खास व्यक्ति को इस देवास की धरती पर आनंद, सुकून और आशाओं की लहर देता रहा है और वह है देवास की माता टेकरी। इस स्थान के साथ देवास शहर की ऊंचाई सदियों से आबाद है। अतीत और वर्तमान में किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति इस स्थल से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है और आभास है कि भविष्य का केंद्र भी टेकरी ही रहेगी। तो निश्चित ही देवास में सबसे बड़ा आकर्षण हैं माता टेकरी। यूं तो टेकरी का इतिहास करीब 1000 साल का सुनने-पढ़ने में आता है, किंतु जबसे दस्तावेजों में बातें संजोकर रखी जाने लगी, तब से एक बात निर्विवाद रूप से सामने आई है कि हर प्रशासकीय, सामाजिक और राजनीतिक व्यक्ति के लिए विकास के मामले में भी केंद्र में रही है टेकरी। रियासतकाल में राजाओं ने यहां व्यक्तिगत रूप से विकास कार्य कराए हैं, तो आजादी के बाद भी यहां विकास का क्रम बढ़ता चला गया। चाहे 1953 में अस्तित्व में आई नगर पालिका की बात हो या फिर 1982 से कार्य करने लगी नगर पालिक निगम की, यहां पदासीन हर व्यक्ति के मन में टेकरी के लिए कुछ करने की चाह रही है। कई बार लोगों ने धन एकत्र करके यहां का विकास किया तो कई बार श्रमदान भी किया। माता टेकरी के सीड़ी मार्ग के निर्माण में श्रमदान करने का उल्लेख मिलता है। स्वरूप बदल जाता है, लेकिन मूल भावना एक ही है। बदल गया है, तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है, लेकिन है आज दर स्थाति और भावना तो वैसी ही है। आज भी यहां लोग अपना दान करते हैं, श्रमदान भी करते हैं और सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। राज काल में विकास कार्य करते हुए राजाओं ने टेकरी के लिए भी कार्य किया। वहीं आजाली के बाद देवास के राजनीतिज्ञों ने भी इस ओर ध्यान दिया। पुराने समय में संसाधन बहुत कम हुआ करते थे। वैसे तो मशीन भी नहीं थी। फिर होती भी तो मशीन का टेकरी पर पहुंचना मुश्किल काम था। में विकास कार्य कम ही हुआ करते थे। यह गति मार्गों के ठीक होने के बाद 1990 से बढ़ गई। टेकरी पर विकास कार्यों ने कुछ ही सालों में गति पकड़ी। प्रशासन ने यहां के लिए विकास कायों की बड़ी शुरुआत की थी। वर्तमान में तो टेकरी पूरी तरह सुविधा और विकास की योजनाओं के केंद्र में रहती है।

एक सात्विक और सकारात्मक व्यक्ति जरूर पहुंचता है इस स्थान पर

हर अच्छा व्यक्ति, हर आगे बढ़ता हुआ व्यक्ति सात्विक होता है और वह जीवन का श्रेष्ठतम अपनाता है। माता टेकरी जैसे स्थानों से जुड़कर वह अपने आपको एक दिव्य यात्रा की ओर ले चलता है। न सिर्फ भौतिक रूप से बल्कि आध्यात्मिक अर्थों में भी टेकरी जैसे स्थान जीवन की ऊंचाई और गहराई को बढ़ाते हैं। इस तरह टेकरी के साथ निरंतर लोगों का जुड़ना रहा है।

नवरात्रि में लगता है भक्तों का मेला
प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रि पर देवास सहित देशभर के श्रद्धालु मां चामुण्डा व तुलजा भवानी के दर्शन को देवास पहुंचते हैं। यह समय व्यवस्था के मान से भी परीक्षा का होता है। कई दिनों पहले यहां पर्व की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं।

नवरात्रि का विशेष महत्व, पांचवीं पीढ़ी कर रही पूजा

नवरात्रि के नौ दिनों में यहां दर्शन करने को श्रद्धालु 24 घंटे पहुंचते हैं। छोटी माता मंदिर (चामुंडा माता) में रोजाना सुबह 6.30 बजे और शाम को 6.15 बजे आरती होती है। इसी तरह बड़ी माता मंदिर (तुलजा भवानी) में सुबह 5 बजे और शाम को 6.30 बजे आरती होती है। हर साल नवरात्रि में दर्शन के लिए रोजाना हजारों श्रद्धालु आते हैं। हर अमावस और पूर्णिमा के दिन दोनों माताओं को चोला चढ़ाया जाता है और मंत्र उच्चारण के साथ माता के चरणों का दूध-दही और जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद धूप-दीप, हल्दी-कुमकुम और नैवेद्य व हार-फूल से माता का पूजन किया जाता है।

अन्य मंदिर

देवास टेकरी पर चामुंडा माता और तुलजा माता मंदिर के अलावा अन्य दर्शनीय मंदिर है। दक्षिण भारतीय शैली में बना कैला माता मंदिर देवास का मुख्य आकर्षण है। इसके अलावा यहां भगवान शिव का एक अति सुन्दर मंदिर तथा शनि नवगृह मंदिर भी है। टेकरी पर कालका देवी का मंदिर, अन्नपूणां माता का मंदिर, अष्टभुजादेवी और दक्षिणाभिमुखी हनुमान मंदिर भी हैं। यहां शीलनाथजी की गुफा भी है जो मां चामुंडा माता मंदिर से कुछ नीचे की तरफ है, जिसमें बैठकर वे ध्यान लगाते थे। चामुंडा माता मंदिर के पास ही एक पानी का छोटा सा तालाब भी है। चामुंडा माता के मंदिर के पास ही में बने छोटे-छोटे नौ मंदिरों के माध्यम से माता के नौ रूपों को भी दर्शाया गया है। ये सभी नौ मंदिर देखने में बड़े ही आकर्षक और मनमोहक लगते हैं।

इस तरह पहुंचें देवास टेकरी

हवाई मार्ग :देवास से निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्या बाई होलकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इंदौर शहर में स्थित है, जो देवास से करीब 34 किमी दूरी पर है। यहां से बस या टैक्सी से देवास टेकरी पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग :देवास शहर राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-मुंबई से जुड़ा हुआ है। यह मार्ग टेकरी के नीचे से गुजरता है। देवास से निकटतम बड़ा शहर इंदौर है, जो 34 किमी दूर है। इंदौर से बस या टैक्सी से देवास टेकरी पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग :इंदौर रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें देवास रेलवे स्टेशन से गुजरती हैं, इसलिए देवास तक ट्रेन से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।

भीतरी यात्रा के साथ ही बाहर जगत की यात्रा पर निकले लोगों के लिए देवास की पुण्यभूमि का यह जादू काम करता रहा है। सदियों से इसे महसूस किया गया है। लोगों की जुबान पर भी यह बात आई है, तो कभी आते-आते रह गई। यहां भौतिक सफलताएं भी आसान हुई हैं। सहजता से जीवन की गाड़ी चलती है। यही वजह है कि यहां के लोगों के व्यवहार में एक शालीनता है, सहिष्णुता और प्रेम है। वे शांत हैं, धैर्यशाली हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो देश के अलग-अलग प्रांतों के लोग यहां आकर इस भूमि को पसंद नहीं करते। अथवा कि इसे कर्मभूमि नहीं बनाते। यहां आकर जब वे अपने गंतव्य को लौटते हैं, तो देवासवासियों की तारीफ किए बिना नहीं रहते। यह सब भी एक प्रकार से मनुष्य की उपलब्धि नहीं है, यहां की शांति का ही प्रताप है। देवासवासियों के लिए भी यह गर्व और खोज का विषय है कि दूर तीर्थों के महापुरुष इस स्थान की तलाश में आए और फिर इसे ही अपनी साधना के लिए चुन लिया। कोई जगह होती है, जहां कोई काम आसान हो जाता है। वही काम दूसरी जगह पर बड़ा मुश्किल हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कोई पानी की तलाश में निकला मरूभूमि का प्यासा व्यक्ति झील के किनारे रहने लगे। जब वह झील के किनारे होगा, तो प्यास बुझाना आसान होगी। उसी व्यक्ति को मरुस्थल में पानी के लिए तड़पना होगा। देवास ऐसा स्टेशन है, जहां अंतर्तम की फ्रीक्वेंसी मेच करती है। इसे ऐसा भी समझ सकते हैं कि हमें किसी यात्रा पर जाना हो तो हमें स्टेशन जाना होता है। जब स्टेशन पहुंच जाते हैं, तब गंतव्य तक पहुंचने की संभावनाएं बलवती हो जाती है। देवास ऐसा ही आध्यात्मिक स्टेशन रहा है, जहां से अंतर्जगत की तरंगें मिलती हैं। यह ऊर्जा का एक अहसास है, जो किसी शांत क्षण में साधारण से साधारण व्यक्ति भी महसूस कर सकता है। ठीक, उसी प्रकार जिस प्रकार एक अच्छे व्यक्ति के पास बैठने पर मन खुश हो जाता है और दुष्ट व्यक्ति के पास बैठने पर मन खिन्न हो जाता है। वैसा ही जगह का प्रभाव किसी से छुप नहीं सकता। इस संदर्भ में देवास पुण्यभूमि है। आपाधापी में लगे लोगों को भी कभीकभार अहसास की हिलोरें इस बात का आभास कराती होंगी। हालांकि यूं तो कई महापुरुषों ने इस बाबद बहुत स्पष्ट कह दिया है कि देवास की भूमि में कोई खास बात है। स्वामी विष्णुतीर्थजी जब अपने गुरु के कहने पर आश्रम की तलाश में यहां आए, तो वे भी टेकरी आकर ठिठक गए। यहां की ऊर्जा ने उन्हें अपनी ओर खींचा। यहां जगह उतनी नहीं थी, जितने स्थान की उन्हें जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने अपने गुरु को यहां का वृत्तांत सुनाते हुए सामने आई परेशानी का जिक्र किया। साथ ही किसी और स्थान के चयन के लिए उनके सामने विकल्प रखा। जवाब में गुरुजी ने उनसे इतना ही कहा कि इसी स्थान का चयन करना है। सामने आने वाली परेशानी तो हल हो जाएगी। ऐसा ही कुछ बाबा शीलनाथ, कुमार गंधर्वजी और रजबअली खां सा. के साथ हुआ। इन्हें देवास की धरती ने चुना। राजा भर्तृहरि तो उज्जैन की तीर्थ नगरी छोड़कर यहां आ गए। बताया जाता है उस काल में यहां कई संतों का आगमन हुआ और उन्होंने माता टेकरी को साधना स्थली बनाया। इसका वर्णन स्वामी शिवोम् तीर्थ महाराज ने अपनी पुस्तक 'साधन शिखर' में किया है। इस बारे में ज्यादा ज्ञात तो नहीं है, पर संभावना है कि निरंतर साधक इस पर्वतमाला पर सत्य की खोज में पहुंचे होंगे। इसके माध्यम से उस परम की यात्रा आसान हुई होंगी, जिसके लिए जन्मों-जन्मों की यात्रा करना पड़ती है। ऐसे लोगों के लिए सत्य की यात्रा को सुगम बनाने का यही जरिया रहा होगा। हमारा सौभाग्य है कि हम इस ऊर्जा भूमि के रहवासी है। यदि हम किन्हीं शांत क्षणों में मां चामुंडा व तुलजादेवी की इस पर्वत श्रृंखला से विकिरित ऊर्जा का आभास करते हैं, यदि इसके आभामंडल की तनिक रोशनी अपने आप तक पहुंचने देते हैं, तो निश्चित रूप से हम सौभाग्यशाली हैं।