Introduction
Back

INTRODUCTION

खरगोन से मात्र 32 किमी. की दूरी पर स्थित सेगांव में प्रसिद्व देवी श्री लालबाई फूलबाई माताजी का ऐतिहासिक स्थान। देवी श्री लालबाई फूलबाई माताजी का इतिहास माताजी का उद्गमन - तात्कालिन होलकर राज्य, सेगांव तहसील के सेगांव में देवी श्रीलालबाई फूलबाई माताजी के उद्भव की प्राचीन जानकारी के अनुसार लगभग 100 वर्ष पूर्व सेगांव में बहने वाली बोराड़ नदी से माताजी की पाषाण मूर्ति प्रकट हुई है। जानकारी के अनुसार सेगांव के नजदीक बोबलवाड़ी (देवझिरी) के आदिवासी ग्राम के निवासी भिलाला जाति के बड़वा दाजी प्रति मंगलवार नदी में अर्जुन वृक्ष के पास स्नान कर वहाॅ अपनी ध्यान आराधना करते थे। उन्हें स्वपन में देवी ने बतलाया की जहाॅ तुम स्थान करते हो उसकी रेत हटाकर मुझे वहाॅ स्थित नीम की छाॅव में स्थापित करो। उस त्यागी वृति के साधक आदिवासी ने स्वपन मे देवी के बताये अनुसार पाषाण मुर्ति सहयोगियों की मदद तत्काल नदी के पष्चिम किनारे पर नीम वृक्ष के सहारे स्थापित की है। प्रति मंगलवार देवीजी की मूर्ति के यहाॅ पर साधक (बड़वा दाजी) आकर पूजा आराधना करने लगे। ग्रामवासियों द्वारा भी मनोकामनाओं के लिये देवी जी के स्थान पर जाने लगे। ग्रामवासियों एवं अन्य पास के श्रद्वालु देवीजी के सामने नदी में स्नान करना एवं मंदिर में पूजा आराधना करने से उनकी मनोकामना की पूर्णता होने से माताजी की महिमा का विस्तार होने लगा।

माताजी का निर्माण - श्रद्वालुआंे की भक्ति एवं आने वालों की संख्या में वृद्वि होने पर सेगांव के तात्कालिन प्रतिष्टित नागरिक एवं ग्रामवासियों के सहयोग से नीम वृक्ष के चारो ओर पत्थर का पक्का चबूतरा 24 फूट बाय 24 फूट का निर्माण कर माताजी की मूर्ति व उनकी बहिन फुलबाई की पाषाण मूर्ति वृक्ष के तने के सहारे स्थापित की गई। श्री मंगतू महाराज पूजारी के समय से ही उत्तर में षिव मंदिर का निर्माण संवत् 2007 में ही प्रांरभ हुआ। षिव मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 28.07.56 को श्री पद्मसिंहजी मण्डलोई द्वारा कराई गई थी। पंडित/पूजा - माताजी प्रतिदिन सुबह शाम आरती एवं पूजा करने के लिए ग्राम पंचायत के सरपंच एवं ग्रामवासियों में केषवपुरा के परिक्रमावासी साधु पूज्य श्री मंगतूजी महाराज को लाकर रखा गया।

श्री मंगतू महाराज पुजारी के अषक्त होने 1962 में श्री गप्पूजी घुसाईजी को उनकी सहरसता हेतु रखा गया। श्री मंगतू महाराज पूजारी का निधन वर्ष 1988 में होने पर श्री बंषीधर जी शर्मा को ग्रामवासियों की राय से श्रीकृष्ण जन्माष्टमि पर्व पर 03.09.88 को नियुक्त किया गया है।

पूजा - देवीश्री लालबाई फूलबाई माताजी के परिसर में समस्त ग्रामवासियों के सहयोग से देवी श्री दुर्गादेवी शप्तषती का पाठ एवं शत्चण्डी का हवन 01.05.1970 से 05.05.1970 को पूर्णाहुति एवं भण्डारा (चैरासी पंगत) का आयोजन किया था। देवी पाठ एवं यज्ञ के आचार्य श्री गंजानंदजी शास्त्री शहादावासी थे। देवी श्री लालबाई फूलबाई माताजी की महिमा दिनोदिन बढने लगी। दूर दराज के ग्रामों से श्रद्वालुओं का आने का क्रम बढता गया। मनोकामनाओं की पूर्ति होने पर मानताओं को उतारने के लिये एवं मनोकामनाओं के लिये श्रद्वालु माद्य माष के शुक्ल पक्ष एवं वैषाख माष के शुक्ल पक्ष में विषेष रुप से आते हैं। वर्ष 1992 से देवी श्री लालबाई फूलबाई माताजी मंदिर से निरन्तर नवरात्रि पर श्री दुर्गादेवी का सप्तषती पाठ एवं शत्चण्डी हवन एवं 1994 से भण्डारा भोज का आयोजन दषहरे के दिन होता रहता है एवं सन् 2011 में सेगांव कमेटी के द्वारा यहाॅ पर सहस़्त्रचण्डी यज्ञ हुआ।

प्रसाद का महत्व - यहाॅ का प्रसाद मंदिर मे ही खाया जाता है

माता की महिमा - माॅ शब्द आते ही त्यागमयी, ममतामयी, उदारमयी माता की झलक सामने आ जाती है। लेकिन जो प्रतिदिन माॅ की चैखट से अपने दिन की शुरुआत करते है वो कहते है कि माॅ दिन मे तीन रुप बदलती है जिसके दर्षन हमनें किए है। समय परिवर्तनषील है समयानुसार परिवर्तन की लहर श्रद्वालुओं में फैलती गई श्रद्वालुओं में जाग्रति उत्पन्न हुई, देवी की कृपा से भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। श्रद्वालुओं में आस्था बढ़ी, आस्था यहा तक बढ़ी की वर्तमान मे गौषाला निर्माण, सामुदायिक भवन, पक्के घाटो का निर्माण, धर्मप्रेमी जनता को देवी के दरबार में आने-जाने की सुगमता हो गई। लालबाई फूलबाई माताजी का मंुह पूर्व दिषा में है। प्रातः कालीन सुर्य की किरणे मां के चरणों को स्पर्ष करती है। देवी की महिमा है कि देवी के यहां स्नान करने पर सारे रोग दूर हो जाते है। देवी श्री लालबाई फूलबाई के बारे में सुविख्यात है कि तीनों पहरों में अपने रुप बदलती है, सुबह बाल्यावस्था, दोपहर प्रोढ़ावस्था एवं शाम को युवा अवस्था में दिखती है। मंगलवार के दिन माॅ का विषेष श्रृंगार किया जाता है। सुबह, शाम आरती होती है देवी के दर्षनों के लिए बड़ी संख्या में भक्तगण दूस दराज से आते है। मंदिर परिसर के दाहिनी और माॅ गायत्री का मंदिर, बाई और भगवान भोलेनाथ का मंदिर है। चारों और छाई हरियाली श्रद्वालुआंे को बरबस ही अपनी और आर्कषित करती है। माॅ के मंदिर श्रद्वा और भक्ति कि साथ मांगी गई मनोकामना अवष्य पूर्ण होती है। भक्त मंदिर मे आकर मत्रत उतारते है। शादी, मत्रत, पिकनिक तथा पार्टियां मांगलिक कार्याे हेतु सुविधाएं उपलब्ध हो जाती है। देवी के मंदिर मंें वर्ष भर कई विभित्र धार्मिक आयोजन होते रहते है। नवरात्री पर अष्टमी, नवमी के दिन हवन-पूजन के पष्चात् प्रसादी का वितरण किया जाता है। दषमी के दिन कन्या भोज व दषहरे पर विषाल भण्डारे का आयोजन किया जाता है। इस दौरान खिचड़ी व चाय की निःषुल्क व्यवस्था ग्रामीणों व दान दाताओं की मदद से कि जाती है। भंडारे का कार्यक्रम विगत कई वर्षो से अनवरत जारी है। भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली लालबाई फूलबाई की कृपा से श्रद्वालुओं पर बनी रहे। मंदिर में सच्चे दिल से जो मांगो वह मनोकामना पूर्ण होती है। देवी की कृपा सभी भक्तों पर बरसती रहे।